सूरमा रिव्यू : दिल से निकली हुई और दिल तक पहुँचने वाली कहानी है ‘सूरमा ‘
आज कल बायोपिक का दौर चल रहा है,हाल ही में आई फिल्म संजू का खुमार अभी तक उतरा भी नही की इस हफ्ते एक और बायोपिक फिल्म सूरमा आज रिलीज हो गयी है, ये फिल्म है भारतिय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह की जीवन की कहानी.
इस कहानी की शुरुआत होती है साल 1994 में हरियाणा के शाहाबाद से, जिसे देश की हॉकी की राजधानी माना जाता था, जहां ज्यादातर लोगों का बस यही सपना है कि वे भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा बनें लगभग सभी बच्चे, चाहे वो लड़की हो या लड़का इसी सपने को पाने की दौड़ में शामिल हैं.
8 साल का संदीप सिंह भी इन्हीं लोगों में से एक है, लेकिन स्ट्रिक्ट कोच के कारण उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है और वो हॉकी से पल्ला झाड़ लेता है. टीनेज तक उसकी जिंदगी से हॉकी गायब रहता है, लेकिन फिर उनके जीवन में हरप्रीत यानिकी तापसी पन्नू की एंट्री होती है, जिससे संदीप को प्यार हो जाता है. हरप्रीत फिर से संदीप में हॉकी के लिए जज्बा पैदा करती है और उसे आगे बढ़ते रहने और खुद को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है. इससे एक बार फिर हॉकी प्लेयर बनना संदीप के लिए जीवन का मकसद बन जाता है. बस इसके आगे संदीप कैसे एक बेहतरीन हॉकी प्लेयर बनता है और इसके बाद उनके जीवन में में कई घटनाएँ घटती है जो की इस फिल्म में दिखाया गया है.
बात करें अगर फिल्म की तो इस फिल्म को डायरेक्ट किया है शाद अली ने, शाद की पिछली दो फिल्मे लगातर फ्लॉप हुई, किल दिल और ओके जानू. लेकिन इस फिल्म से उनके खाते में एक अच्छी फिल्म तो जुड़ ही जाएगी. ये फिल्म आपको शुरू से बांधें रखते है, इसका स्क्रीन प्ले बहुत ही टाइट है आप कहीं पर भी बोर नही होत्ते है पहले हाफ में संदीप सिंह की हॉकी प्लेयर बनने की कहानी है, जो सीधी सपाट है जहाँ इसमें काफी हंसी मजाक है. मगर फिल्म की असली जान सेकंड हाफ है.सेकंड हाफ आपको भावुक कर देगा, ये जहाँ कई सीन आपको रुला देंगे, संदीप सिहं की कहानी बहुत ही मजबूत है.
और दिलजीत दोसांझ ने इसमें बेहतरीन काम किया है. वो अपने किरदार के हर भाव और लम्हे को जीते और जीवंत करते दिखाई देते हैं. फिल्म में उनकी हॉकी की स्किल्स तारीफ के काबिल दिखती हैं, लेकिन उन्होंने जिस तरह से अपने किरदार को समझा और पर्दे पर जिया, वह सबसे ज्यादा प्रभावित करता है.
तापसी पन्नू हमेशा की तरह ऐक्टिंग के मामले में अपना बेस्ट देती दिखीं, लेकिन उनका किरदार फिल्म के ट्रैक को स्लो करता है. सपोर्टिंग कास्ट के रूप में अंगद बेदी जिन्होंने दिलजीत के बड़े भाई का किरदार निभाया है, शानदार अभिनय करते नजर आए हैं. उन्होंने अपने किरदार को बखूबी पर्दे पर दिखाया है. कुलभूषण खरबंदा और सतिश कौशिक की ऐक्टिंग भी अच्छी है
बात करें अगर फिल्म की खामियों की तो ये एक स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म है लेकिन फिर भी इसमें हॉकी को इतनी डिटेल्स में नहीं दिखाया गया है संदीप सिंह के अलावा किसी भी दुसरे हॉकी प्लेयर के बारे नही बताया गया है, इसके अलावा इसमें वो रोमांच और थिर्ल नही है. जो एक स्पोर्ट्स ड्रामा में चाहिए फिल्म का म्यूजिक भी बिल्कुल भी अच्छा नही है जबकि इसमें शंकर एहसान लॉय और गुलजार जैसे बड़े नाम जुड़े हैं. फिल्म में कई गानें हैं, लेकिन कोई भी गाना इंप्रेस नहीं कर पाता और आपको याद भी नही रहता.
मगर ये कमियां भी होने के बावजूद भी इस फिल्म को देखा जा सकता है और ये फिल्म आपको दिल छु देती है और आप जब फिल्म देख कर बाहर आ आते हैं तो आप पाने साथ एक अच्छी कहानी लेके जाते हैं.
रेटिंग : 3 स्टार