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'बत्ती गुल मीटर चालू' : अधूरी रिसर्च का नमूना है फिल्म, नहीं जाना क्या होता है 'ठहरा' और 'बल' शब्द का मतलब
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‘बत्ती गुल मीटर चालू’ : अधूरी रिसर्च का नमूना है फिल्म, नहीं जाना क्या होता है ‘ठहरा’ और ‘बल’ शब्द का मतलब

शाहिद कपूर और श्रद्धा कपूर की फिल्म ‘बत्ती गुल और मीटर चालू’ का ट्रेलर रिलीज हो गया है. हालाँकि  फिल्म एक अच्छे सब्जेक्ट पर बनी है  जो  की बिजली की समस्या है जिससे  इंडिया  हर मिडिल क्लास का आदमी परेशान है.

मगर इस फिल्म के डायलॉग बेहद झिलाऊ हैं. उत्तराखंड को बैकड्रॉप में रखकर तैयार की गई इस फिल्म में श्रद्धा और शाहिद स्थानीय एक्सेंट को कॉपी करने में बुरी तरह फेल नजर आ रहे हैं. फिल्म के अधिकतर डायलॉग्स में उत्तराखंड की दो अलग-अलग बोलियों के तकिया कलाम के शब्द का यूज बेवजह किया गया है. कहना गलत नहीं होगा कि फिल्म को आधी-अधूरी रिसर्च के आधार पर जल्दबाजी में बनाया गया है. क्यूंकि फिल्म के राइटर और डायरेक्टर उत्तराखंड से नही है  तो  शायद वो  उत्तराखंड की बोली को नही समझ पाए

हर डायलॉग के बाद है ‘बल’ और ‘ठहरा’ :फिल्म के करीब-करीब हर डायलॉग के बाद ‘बल’ और ‘ठहरा’ शब्द का यूज किया गया है. आपको बता दें कि ‘बल’ शब्द का उपयोग गढ़वाली में होता है. किसी गढ़वाली व्यक्ति के हिंदी बोलने के दौरान ‘बल’ शब्द को व्यंग्य के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। जबकि ‘ठहरा’ कुमाऊंनी बोली का एक शब्द है. इसे तकिया कलाम समझा जाता है. आपको बता दे की उतराखंड में गढ़वाली और कुमाऊंनी दो अलग अलग बोली है और दोनों अलग अलग जगह बोली जाती है. तो इस फिल्म में  किरादर एक साथ दो अलग अलग बोली का यूज़ कर रहे हैं

हर वाक्य के बाद ‘ठहरा’ और ‘बल’ का प्रयोग कुमाऊंनी और गढ़वाली में आम है, लेकिन जब इसे हिंदी के साथ सुनते हैं तो ये अटपटे लगते हैं.

 

स्थानीय एक्सेंट भी दोनों बोलियों के अलग-अलग हैं.फिल्म के किरदार ‘बल’ और ‘ठहरा’ शब्द ऐसे बेधड़क बोल रहे हैं, जैसे ये स्थानीय बोली के हों. दोनों रीजन के लोग अलग-अलग तरह से बात करते हैं, जबकि फिल्म में एक ही किरदार दोनों रीजन के इन शब्दों को बोल रहा है. मसलन, शाहिद कपूर का डायलॉग- ‘दोस्ती में ऐसा भी होने वाला ठहरा बल’ इस डायलॉग में ‘ठहरा’ भी है और ‘बल’ भी, जो कि अधूरी रिसर्च का नमूना है.

फिल्म के स्टोरी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग राइटर सिद्धार्थ और गरिमा ने स्थानीय शब्द तो उठाए है लेकिन अधूरी रिसर्च के साथ। यही वजह है कि फिल्म के गंभीर डायलॉग को स्थानीय बोली का टच देने के चक्कर में फनी बना दिया है. और ये फिल्म गंभीर सब्जेक्ट पर होते हुए भी कॉमेडी लगती है.

फिल्म की शूटिंग भी  इंडिया के सबसे बड़े बांध  में से एक टिहरी बांध  के आस-पास के इलाकों में हुई है. फिल्म बिजली की दरों पर करारा व्यंग्य करती है. जबकि, कई सारे डेम होने के कारण उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश भी कहा जाता है.

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