‘लैला मजनू’ की कहानी कश्मीर के रहने वाले कैस भट्ट (अविनाश तिवारी) और लैला (तृप्ति डिमरी) की है। कैस के पिता बहुत बड़े बिज़नसमैन हैं और लैला के पिता से उनका छत्तीस का आंकड़ा है। इस दुश्मनी के बीच जब कैस और लैला की लव स्टोरी शुरू होती है हॉल में बैठे दर्शक उसी वक्त आसानी से अंदाज लगा लेते हैं कि आगे चलकर यह लव स्टोरी किस ओर करवट लेने वाली है। जाहिर है इन दोनों की फैमिली को उनका यह रिश्ता कतई मंजूर नहीं, लेकिन कैस और लैला फैमिली की परवाह किए बिना एक-दूसरे से मिलते हैं और उनका प्यार परवान चढ़ता जाता है। एक दिन जब इनका सामना अपनी-अपनी फैमिली से होता है तो लैला-मजून की यह लव स्टोरी किस मोड़ पर पहुंच जाती है और इस लव स्टोरी की अंत क्या होता है इसे जानने के लिए फिल्म देखनी होगी.
लैला मजनूं की अमर कहानी को बॉलीवुड में कई निर्माता-निर्देशकों ने सैकड़ों बार अलग-अलग अंदाज में बनाया है। कहानी इतनी बार बन चुकी है कि बासी पड़ गई। निर्माता इम्तियाज अली के भाई साजिद अपनी डेब्यू फिल्म में लैला-मजनूं की कहानी लाए हैं। जिसमें कश्मीर की पल-पल रंग बदल कर नई बनी रहती खूबसूरती के अलावा कुछ नया नहीं है.
मगर इस फिल्म में सबसे अच्छी बात ये है की ये फिल्म आपको फ्रेस फील करवाती है, फर्स्ट हाफ की कहानी आपको देखी हुई मालुम पड़ते हुए भी बांधे रखती है. मगर इस फिल्म का सेकंड हाफ और भी अच्छा है. आप जैसे सोचते हैं वैसे कुछ भी नहीं होता है. आपको फिल्म दूसरे लेवल पर लेकर जाती है. और फिल्म खत्म होती है ऐसे मोड़ पर जो प्यार के पागल पन की हद दिखाती है.
बात करें एक्टिंग की तो अविनाश तिवारी मजनू के किरदार को मुकम्मल करते हुए लगते हैं. फिल्म के सेकेंड हाफ में उनकी एक्टिंग लाजवाब है. अविनाश के मुकाबले तृप्ति काफी कमज़ोर दिखती हैं. कई जगह उनके एक्सप्रेशन्स काफी ज़्यादा फेक से महसूस होते हैं. फिल्म के बाकी किरदार भी अपनी जगह पर ठीक काम करते हैं. फिल्म आज के लैला मजनू पर आधारित है तो ऐसे में एक बात खटकती है कि क़ैस जब डिप्रेशन में जाने लगता है तो उसके दोस्त उसे किसी डॉक्टर को दिखाने के बजाय घर में कैद कर लेते हैं. फिल्म की शुरूआत में लैला दिखाई गई है उससे ये झलकता है कि उसकी एक्टिंग से ज़्यादा उसकी लिपस्टिक पर फोकस किया गया है. इसके बावजूद भी फिल्म के लीड्स स्क्रीन पर ताज़गी महसूस कराते हैं.
फिल्म में बाकी किरदारों ने अपनी जबरदस्त एक्टिंग की है परमीत सेठी ने भ जहाँ लैला के पिता रोल को अच्छे से निभाया वहीँ सुमित कौल लैला के पति के किरदार में अच्छा काम किया। इस फिल्म के बाद उनकी अच्छी पहचान बनने वाली है.
‘लैला मजनू’ के संगीत पर नजर डाले तो नीलाद्री कुमार, जोई बरुआ और अलिफ का म्यूजिक फिल्म को बेहद खास बनाता है। फिल्म में ‘आहिस्ता’, ‘ओ मेरी लैला’ और ‘हाफिज-हाफिज’ गाना दर्शकों के दिलों को जीतने में कामयाब होता है। इरशाद कामिल के लिरिक्स इस फिल्म को सूफियाना रूप देते हैं. बैकग्राउंड स्कोर की बात करें तो हितेश सोनिक ने अच्छा काम किया है। कुल मिलाकर अगर आप आज के दौर में तमाम तरह की बायोपिक्स जैसी फिल्मों से बोर हो चुके हैं और लव स्टोरी को परदे पर देखने में विश्वास रखते हैं तो यह फिल्म आपका अच्छा मनोरंजन कर सकती है.फिल्म कई बार आपको इम्तियाज अली की फिल्म रॉक स्टार की याद दिलाती है.
‘लैला मजनू’ के फिल्मांकन की बात करें तो चूंकि यह फिल्म कश्मीर की पृष्ठभूमि के दो प्यार करने वालों की कहानी बयां करती है। उस नजर से देखा जाए तो ‘लैला मजनू’ के फिल्मांकन में कश्मीर की खूबसूरती को कैमरे में कैद करने में थोड़ी कंजूसी की गई है। फिल्म में इम्तियाज और साजिद की ‘जिंदगी लंबी होती है, लेकिन हमेशा के लिए नहीं होती’ और ‘प्यार का प्रॉब्लम क्या है न… कि जब तक पागलपन न हो… वो प्यार ही नहीं’ जैसे डायलॉग्स ‘लैला मजनू’ को थोड़ा खास बना देते हैं।
कुल मिला कर ये एक मनोरंजक फिल्म है, आप इसे एक बार जरूर देख सकते हैं.
रेटिंग : 3 स्टार
यहाँ आप फिल्म का प्रेस रिव्यु देख सकते हैं: